अवसाद एक ऐसी दुखदायी मनःस्थिति है, जो शरीर व मन दोनों को तोड़ता है। यह व्यक्ति के काम करने की योग्यता और कार्य की स्तरीयता दोनों को गहरा प्रभावित करता है। यह उन लोगों को भी दुख देता है, जो अवसाद पीड़ित व्यक्ति से जुड़े हैं और उससे प्यार करते हैं। यह अपना प्रभाव व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र सब पर अलग-अलग स्तर पर डालता है। 1990 विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की 25 प्रतिशत युवा-शक्ति आज अवसाद से पीड़ित है। 18 साल की उम्र तक का हर युवा कम-से-कम एक बार अवसाद की पीड़ा से जरुर गुजरता है। 16 प्रतिशत लोग अपने जीवन में
किसी-न-किसी समय इस पीड़ा को झेलते हैं और हर
पांच में से एक औरत अवसाद पीड़ित होती है। अवसाद
पीड़ित माता-पिता के बच्चे में अवसाद होने की 6 फीसदी अधिक संभावना होती है।
उम्र के कुछ ऐसे पड़ाव हैं, जो अवसाद के लिए ज्यादा संवेदनशील हैं, जिसमें किशोरवय प्रमुख है। यह एक विडंबना ही है कि आज जब भारत की युवा-शक्ति पर सबकी नजर है, तो यही युवा-शक्ति राष्ट्र का मजबूत कंधा बनने की बजाय खुद ही गुमनामी और अवसाद के अंधेरै में जीने को मजबूर है और परिवार व समाज पर महज एक बोझ बनकर रह जाती है।
बुढ़ापा + सेवानिवृत्ति = अवसाद
रिटायरमेंट के समय बहुत से लोग खुद को रिटायड़ी लाइफ के लिए तैयार नहीं कर पाते। उनके लिए यह पद,
प्रतिष्ठा, पैसा और शक्ति के खोने जैसा होता है। वे डरते
हैं कि रिटायरमेंट के बाद समाज या परिवार उन्हें कम
सम्मान देगा या स्वीकार नहीं करेगा।
अवसाद कि स्थिती में क्या करें ?
1. नकारात्मकता से बचें :
अपने को दोषी मानने वाली भावनाओं और विचार को प्रश्रय न दें। आप ऐसा अनुभव कर सकते हैं कि आप किसी की मृत्यु, खोने या दुख के लिए उत्तरदायी हैं। अब ख़ुद को कहिए कि चिंता, करने से अब कोई फायदा नहीं है और भविष्य में सावधान रहना है।
किसी-न-किसी समय इस पीड़ा को झेलते हैं और हर
पांच में से एक औरत अवसाद पीड़ित होती है। अवसाद
पीड़ित माता-पिता के बच्चे में अवसाद होने की 6 फीसदी अधिक संभावना होती है।
उम्र के कुछ ऐसे पड़ाव हैं, जो अवसाद के लिए ज्यादा संवेदनशील हैं, जिसमें किशोरवय प्रमुख है। यह एक विडंबना ही है कि आज जब भारत की युवा-शक्ति पर सबकी नजर है, तो यही युवा-शक्ति राष्ट्र का मजबूत कंधा बनने की बजाय खुद ही गुमनामी और अवसाद के अंधेरै में जीने को मजबूर है और परिवार व समाज पर महज एक बोझ बनकर रह जाती है।
बुढ़ापा + सेवानिवृत्ति = अवसाद
रिटायरमेंट के समय बहुत से लोग खुद को रिटायड़ी लाइफ के लिए तैयार नहीं कर पाते। उनके लिए यह पद,
प्रतिष्ठा, पैसा और शक्ति के खोने जैसा होता है। वे डरते
हैं कि रिटायरमेंट के बाद समाज या परिवार उन्हें कम
सम्मान देगा या स्वीकार नहीं करेगा।
अवसादग्रस्त समूहों में कुछ और महत्वपूर्ण हैं। जिनमें वे लोग हैं, जिनका अपनी जमीन, संस्कृति और परंपरागत रोजगार से पलायन हो गया है और स्वयं को प्रवासी के रूप में ढाल नहीं पाते हैं। इसके अलावा अवसाद के शिकार वे भी होते हैं, जिनका कोई पारिवारिक अथवा सामाजिक जीवन नहीं होता और नितांत अकेले रहने को अभिशप्त होते हैं।
अवसाद कि स्थिती में क्या करें ?
1. नकारात्मकता से बचें :
अपने को दोषी मानने वाली भावनाओं और विचार को प्रश्रय न दें। आप ऐसा अनुभव कर सकते हैं कि आप किसी की मृत्यु, खोने या दुख के लिए उत्तरदायी हैं। अब ख़ुद को कहिए कि चिंता, करने से अब कोई फायदा नहीं है और भविष्य में सावधान रहना है।
2. क्षतिपूर्ति के लिए किसी कार्यकलाप के बारे में सोचिए और भगवान से माफ़ करने के लिए प्रार्थना कीजिए।
3.पराशक्ति पर भरोसा रखें। भगवान, प्रार्थना, पूजा,
मंदिर/मस्जिद/चर्च और तीर्थ केंद्र पर भरोसा रखिए।
4.आशावादी बनें।
सुख और दुख, प्यार और घृणा, पाना और खोना, ख़ुशी और उदासी, अच्छा और बुरा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जब आप एक चेहरा देखते हैं तो दूसरा चेहरा भूल जाते हैं। पर कुछ समय बाद दूसरा चेहरा सामने आ जाता है। आशा रखिए कि आप निश्चित ही पाएंगे, सफल होंगे और एक बेहतर डील जल्द या देर से पाएंगे ही।
3.पराशक्ति पर भरोसा रखें। भगवान, प्रार्थना, पूजा,
मंदिर/मस्जिद/चर्च और तीर्थ केंद्र पर भरोसा रखिए।
4.आशावादी बनें।
सुख और दुख, प्यार और घृणा, पाना और खोना, ख़ुशी और उदासी, अच्छा और बुरा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जब आप एक चेहरा देखते हैं तो दूसरा चेहरा भूल जाते हैं। पर कुछ समय बाद दूसरा चेहरा सामने आ जाता है। आशा रखिए कि आप निश्चित ही पाएंगे, सफल होंगे और एक बेहतर डील जल्द या देर से पाएंगे ही।
पूरी चर्चा से यह बात बिल्कुल साफ़ है कि अवसाद।
के कारण इतने सामान्य हैं कि जो हर किसी के जीवन
में आते ही आते हैं। साधारणतः अधिकतर लोगों में यह
कुछ दिनों तक रहता है। वे दूसरों की सहायता से वास्तविकता को स्वीकार कर लेते हैं।अवसाद के लक्षणों से छुटकारा पाकर दुख से उबर जाते हैं और अपने दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों में लग जाते हैं। अगर वे नहीं कर पाए, तब परिवार और प्यार करने वाले की जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं कि ऐसे व्यक्ति का ज्यादा से ज़्यादा ख़याल रखा जाए, ताकि पारिवारिक प्यार और देखभाल उसे उबार लें। बेशक यह बीमारी जितनी भी उलझन भरी और गंभीर है, प्यार ही वह एकमात्र दवा है, जिससे व्यक्ति फिर से अपने सामान्य जीवन में लौट सकता है, चाहे यह बिना दवा के हो या दवा के साथ।
में आते ही आते हैं। साधारणतः अधिकतर लोगों में यह
कुछ दिनों तक रहता है। वे दूसरों की सहायता से वास्तविकता को स्वीकार कर लेते हैं।अवसाद के लक्षणों से छुटकारा पाकर दुख से उबर जाते हैं और अपने दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों में लग जाते हैं। अगर वे नहीं कर पाए, तब परिवार और प्यार करने वाले की जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं कि ऐसे व्यक्ति का ज्यादा से ज़्यादा ख़याल रखा जाए, ताकि पारिवारिक प्यार और देखभाल उसे उबार लें। बेशक यह बीमारी जितनी भी उलझन भरी और गंभीर है, प्यार ही वह एकमात्र दवा है, जिससे व्यक्ति फिर से अपने सामान्य जीवन में लौट सकता है, चाहे यह बिना दवा के हो या दवा के साथ।
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