(श्रुतपंचमी पर्व पर सवा दो साल कि बालिका का अपने पापा से छोटासा संवाद)
पापा - हां बेटी ! ऐसा ही कुछ समझ ले। आज तुझे जन्म देने वाली तेरी आई का बर्थ डे तो है ही ; साथ ही साथ जिनवाणी आई जिसे जिनवाणी माता भी कहते हैं ; उसका भी बर्थडे है।
ब्राह्मी - जिनवाणी माता का बर्थडे ! वो कैसे ?
पापा - आज श्रुतपंचमी पर्व है। आज के दिन आचार्य भूतबली और पुष्पदंत मुनिराज द्वारा जैन धर्म का पहला ग्रंथ षट्खंडागम लिखकर पूर्ण हुआ था।
ब्राह्मी - 'षट्खंडागम' ! यह कैसा नाम है ?
पापा - षट् = छह , खंड = अध्याय , आगम = शास्त्र।
इसमें 6 अध्याय होने से इसे 'षट्खंडागम' कहां जाता है। और तो और तुम ही नहीं तो विश्व में ऐसा कोई जैन ना होगा जो नित्य प्रति इस ग्रंथ के मंगलाचरण का पाठ न करता हो।
इसमें 6 अध्याय होने से इसे 'षट्खंडागम' कहां जाता है। और तो और तुम ही नहीं तो विश्व में ऐसा कोई जैन ना होगा जो नित्य प्रति इस ग्रंथ के मंगलाचरण का पाठ न करता हो।
ब्राह्मी - अच्छा ! वह कौन सा मंंगलाचरण है ?
पापा - अरे ! तुम्हें नहीं पता। णमोकार मंत्र जानती हो या नहीं ?
ब्राह्मी - जानती हूं।
पापा - वह मंत्र हि तो इस ग्रंथ का मंगलाचरण है। क्या तुम्हें णमोकार मंत्र बोलना आता है ?
ब्राह्मी - मुुुुझे बराबर बोलना नही आता। तुतलाते हुए हि बोल पाती हुॅ। बोलू ?
पापा - कोई बात नहीं ; जरा बोलके दिखाना । ( तुतलाते हूूूए बोलती है।)
पापा - बहुत सुंदर बेटी !
ब्राह्मी - वह ग्रंथ मुझे देखने मिलेगा ? क्या नाम बताया था उसका ? (याद करते हुए) अ..अ..... याद आया 'षट्खंडागम' ।
पापा - क्यों नहीं बेटी ? (दिखाते हुुए) देखो ।
(ब्राह्मी देखती है और आनंद पूर्वक ग्रंथों को धूप दिखाने में हाथ बटाती हैं।)
WOW too good
ReplyDeleteThanks bro
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